मनेंद्रगढ़ वन मंडल के डीएफओ किसके दम पर जंगलों से करा रहे लकड़ियों की तस्करी
एक खुद को कहते हैं। वन मंत्री के रिश्तेदार,,तो दूसरे खुद को बताते हैं। आला अफसर का “खास”
बैकुंठपुर कोरिया — सिर्फ एक पेड़ मा के नाम और बाकी जंगल अदानी के नाम ,,लंबित मजदूरी पर हंगामा, पी एम आवास पर बुलडोजर,जंगलों में अतिक्रमण और अवैध कटाई सहित चौकीदारों की दिहाड़ी पर डांका,,आखिर क्या चाहते हैं। राजकाज के ठेकेदार,,ये बात हम नहीं कह रहे। बल्कि ये बातें शराब और कोयले के घोटालों में नजरबंद और ईडी की कार्रवाई से त्रस्त कांग्रेसियों की जुबानी हर रोज दोहराई जा रही है । जी हां जिस तरह बीते ढाई साल में छत्तीसगढ़ की मौजूदा सरकार के नेतृत्व में मुद्दाविहीन कांग्रेस को अनगिनत मुद्दे मिल चुके हैं। और जिसका कांग्रेस जमकर फायदा भी उठा रही है । साथ ही जन जन तक इसे परोस रही है । जिसके बाद अब ऐसा प्रतीत भी हो रहा है । कि छत्तीसगढ़ में भाजपा सरकार के गुजरे महज ढाई साल में ही आमजनता नाखुश और खुद को ठगा हुआ महसूस करने लगी है । और वह कांग्रेस जो पूरे पांच वर्ष विपक्ष में कमजोर शिथिल पड़ी रहती थी। उसी कांग्रेस के नेता केंद्र से लेकर प्रदेश सरकार को अब हर मंच पर घेरते देखे जा रहे हैं । बता दें कि जल जंगल और जमीन को लेकर जिस तरह प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने,,एक पेड़ मां के नाम बाकी जंगल अदानी के नाम,,का गुंजायमान भाषण दिया था। और भाजपा दांतों तले उंगलियां दबाकर रह गई थी । कह सकते हैं। कि पूरे प्रदेश में इसकी गूंज एक एक आमजन के कानों तक गई है।
सरकार पर पलीता,,,
अवगत करा दें कि जहां प्रदेश स्तर पर कांग्रेस के पूर्व नेताओं ने सरकार के राजकाज को लेकर हल्ला बोल का सिलसिला नांद रखा है। तो वहीं गरीबों के आवास पर बुलडोजर,मजदूरों की मजदूरी पर डांका सहित जंगलों से लकड़ियों की तस्करी पर कोरिया और एम सी बी जिले के कांग्रेसी और आमजन सरकार का जमकर चिच्छा लेदर करते देखे जा रहे हैं। और दोनों जिलों के इन सभी ज्वलंत मुद्दों में कांग्रेसियों के साथ आमजन और भाजपाई भी एकमत हैं । जिसका मतलब साफ है। कि भाजपाई जनप्रतिनिधियों में अपने ही सरकार से छले जाने का दर्द है । और जिस कारण उनकी लोकप्रियता धार पर है। तो वहीं कांग्रेस को बैठे बैठाए नित नए मुद्दे इनके अफसर दे दे रहे हैं । आलम ये है कि मनेंद्रगढ़ वन मंडल में पदस्थ डीएफओ मनीष कश्यप के हर रोज नए नए कारनामें लोगों के बीच आ रहे हैं। और उन करतूतों लापरवाहियों को बड़ी ही बेशर्मी के साथ जिंदा मक्खी निगलने की तरह काले सच को कोरा सच बना दे रहे हैं। और जिस पर जमकर जलील भी किए जा रहे हैं । बावजूद इसके इनका कुर्सी में बने रहना । कहीं न कहीं सरकार की छवि पर पलीता लगाने जैसा ही है। हम नहीं कहते बल्कि इनकी सर्विस हिस्ट्री इस बात की गवाही देती है । की कोरिया और मनेंद्रगढ़ वन मंडल में पदस्थ डीएफओ अपने दायित्व को लेकर अब तक के सर्विस में कितने जिम्मेदार और ईमानदार रहे हैं । सूत्र और विभाग के एक अफसर की जुबानी माने तो डीएफओ मनीष कश्यप खुद को वन मंत्री केदार कश्यप का रिश्तेदार बताते हैं । और उनका कोई कुछ नहीं बिगाड़ सकता यह भी कहते हैं। जिस बात को ये अपने अधीनस्थ विभागीय अफसर से भी कह चुके हैं। और अगर ऐसा है। तो जनाब हर वो मनमानी करते जाएंगे जो उनके खुरापाती दिमाग में आएगा।
आला अफसर के खास को मतलब सिर्फ कमीशन से,,,,
राजनीतिक विश्लेषक जिस तरह छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की बर्बादी की वजह पूर्व कांग्रेस के एक नेता को मानते आए हैं। बता दें कि वैसा ही वर्तमान प्रदेश सरकार के कुछ मंत्री और अफसरों को भी मान कर चल रहे हैं। जिन्होंने भाजपा की लोकप्रियता को महज दो ढाई साल में ही आधे से ज्यादा गर्त में झोंक दिया है । “बहरहाल” हम राजनीतिक पचड़ों में नहीं पढ़ते और ना ही हमारा सरकार के मंत्रियों के ताने बाने से ताल्लुक है । पर बात जब जनमानस के हितों और व्यवस्था के संतुलन को बाधित करने का हो। तो संबंधितो की भूमिका पर प्रकाश डालना जरूरी हो जाता है । विश्वस्त सूत्रों की कहें तो कोरिया वन मंडल में पदस्थ डीएफओ चंद्रशेखर शंकर सिंह परदेशी दुर्ग से कोरिया किसी बड़े अफसर के आदेश पर आए हैं। और ये बात डीएफओ परदेशी डंका बजा बजाकर कहते हैं। मुझे यहां नहीं आना था । पर मुझे भेजा गया ।,,,तो समझिए आप की इन्हें भेजा गया है । तो चलों साहब मान भी लिया जाए कि आप दुर्ग में जितना नाम कमा चुके हैं । उसका आपको इनाम मिल गया। क्या इसलिए आपकी कमीशन खोरी चरम पर है । कमीशन खोरी की जुबानी शिकायत आपके रेंजर ही करते हैं । जरा पूछिए उनसे। बता दें कि इन तमाम पहलुओं पर हल्के ही गौर करें तो ऐसा लगता है कि सरकार के तंत्र मंत्र और यंत्र सभी पूरी तरह बेतरतीब और अव्यवस्थित हो चुके हैं । कहीं पर राजधानी में बैठे अफसरों की मनमानी पूरे सबाब पर है। तो कहीं ऐसे मनमाने अफसरों के अधीनस्थ अफसर मौके को हाथ से जाने नहीं दे रहे हैं । मतलब कह सकते हैं। कि कोरिया वन मंडल के डीएफओ का एक सूत्रीय अभियान सिर्फ,, कुछ भी करो,,वो समझे जिसने हमे यहां भेजा है। तो जिसके बाद जनाब सिर्फ वातानुकूलित कार्यालय में बैठे रहते हैं। जंगल इसलिए नहीं जाते क्यों कि इन्हें यहां आना नहीं था । बिना मन के भेजे गए हैं । कोरोना काल से रुका मजदूरी भुगतान मीडिया कराती है । साहब का मन करता है । तो पी एम आवास पर बुलडोजर चलवा देते हैं । दूसरी तरफ चाहे भले ही पूरा बीट का बीट अतिक्रमण हो जाए वहां नहीं जायेंगे जंगल बचाने । बदकिस्मती से कहना पड़ रहा है। कि ऐसे अफसर कैसे सिस्टम का हिस्सा बन जाते हैं। जिन्हें अपनी कुर्सी की मूल जिम्मेदारी की बजाए सिर्फ और सिर्फ भ्रष्टाचार और सिस्टम को कलंकित करने का हुनर ही आता है।












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