डी एफ ओ परदेशी साहब,, जरा भागवतपुर के जंगल से संचालित साल तस्करी तो बंद करा दीजिए

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क्यों की,,सोनहत रेंजर तो हमेशा अंबिकापुर दौरे में ही रहते हैं

जिस डीएफओ के पूर्व कार्यकाल में 16 बंदरों की गोली मारकर की गई थी हत्या,,क्या वो भागवतपुर के साल तस्करों तक पहुंच भी पाएंगे

सरगुजा वन वृत अंतर्गत,,अंबिकापुर से संचालित अफसरशाही जंगलों के लिए “नासूर”

बैकुंठपुर कोरिया – जंगलों की वृद्धि और पर्यावरण संरक्षण दिन पर दिन चुनौती बनता जा रहा है। जिसके लिए प्रत्येक वर्ष केंद्र सरकार सहित प्रदेश सरकारें वन विभाग को विभिन्न मदो में करोड़ों रुपयों की राशि जारी करती है। परंतु जबसे जंगलों में अफसरशाही राज हावी हुआ है। वन वृद्धि तो छोड़िए जंगल बचाने के वांदे हो गए हैं साहब । और विडंबना ऐसी कि यह मानव निर्मित गंभीर विनाशकारी समस्या। जिसका जीवंत रूप बीते 3,,4 वर्षों में 45 से 50 डिग्री के तापमान पर देखा गया है । पर समस्या में चिंतन के बजाय सरकारें भी। विश्व पटल पर बेहतर पर्यावरण और वन संरक्षण का ढोल पीटती रहती हैं । और ग्लोबल वार्मिंग की समस्या पर जलवायु परिवर्तन के नाम विश्व बैंक,,अंतराष्ट्रीय संगठनों से भर भर कर वित्तीय सहायता लेती हैं।

सोनहत रेंज का भागवतपुर,,,,

कोरिया वन मंडल का सोनहत वन परिक्षेत्र। जहां पर भागवतपुर ग्राम है।जिसकी आबादी करीब 3 सौ के करीब है। और जिस गांव के राजस्व भूमि का आवासीय सहित कृषि रकबा 50,,60 हेक्टेयर ही है । परंतु विगत कई वर्षों के अंतराल में भागवतपुर ग्राम जंगलों की ओर तेजी से बढ़ा है। ग्राम की बढ़ती आबादी के लिए कृषि संसाधन की पूर्ति तंजरा और कच्छाड़ी बीट के सरई के वनों को नष्ट करके की जा रही है। बीते 5 वर्ष पहले की तुलना में वर्तमान परिदृश्य सदमे में डाल देगा । वन विभाग की लापरवाही की वजह से उक्त दोनों बीट की बड़ी वन भूमि । अवैध कब्जे की कृषि भूमि में तब्दील हो चुकी है। बीते 2 वर्ष पूर्व जब मीडिया के द्वारा इस क्षेत्र का भ्रमण किया गया था। तो उन दिनों इस जंगल का नजारा काफी चौंकाने वाला था । एक किलोमीटर के दायरे के बड़े बड़े प्राकृतिक सरई के सैकड़ों हरे पेड़ों को एक लाईन से काटकर गिरा दिया गया था । घटना कारित जनों से जब इस कटाई पर बात की गई । तो उन्होंने बताया की हमारे परिवार बढ़ रहे हैं। और रोजगार नहीं है।कृषि पर निर्भर रहते हैं । इसलिए हम सभी जंगल को काटकर खेत बनायेंगे । ताकि गुजर बसर के लिए घर और जीवकोपार्जन के लिए पर्याप्त कृषि भूमि उपलब्ध हो सके। कटाई पर कुछ लोगों ने कहा की सरई की लकड़ियों को बेचकर जरूरतों को पूरा करते हैं । जंगलों के रस्ते सूरजपुर जाती हैं। सरई की लकड़ियां। बता दें की वन विभाग इस समस्या को भले ही गंभीरता से न ले। परंतु पर्यावरण को संरक्षित रखने वाले सरई के प्राकृतिक वनों की छाती पर यह विनाशकारी तांडव । काफी चिंताजनक विषय है। जो आज भी अनवरत जारी है।

चुनौतियां जब जंगल बचाने की हो,,,

जिस वन मंडल में जंगल बचाना चुनौतियों भरा हो । और वन विभाग का समूचा स्थानीय अमला लापरवाह और अफसरशाही की रसूख से ग्रसित हो। सोचिए स्थिति कैसी होगी। (Head of the department korea forest Division ) चंद्रशेखर शंकर सिंह परदेशी जैसे अफसर । जिनका बीता अब तक का कार्यकाल विवादों से घिरा रहा हो । पूर्व के कार्यकाल में अर्जुन (कहुआ) की तस्करी,,महिला कर्मचारी के रंग रूप पर अशोभनीय टिप्पणी,,स्टाफ से गाली गलौज और मानसिक प्रताड़ना के साथ । सनातन धर्म में पूज्यनीय जीव बंदरों की गोली मारकर हत्या जैसी गंभीर घटनाएं शामिल हों । तो क्या ऐसी स्थिति में भागवतपुर की समस्या का निदान क्या इनसे संभव है ? दूसरी तरफ सोनहत रेंज में पदस्थ रेंजर अजीत सिंह जो क्षेत्र में कभी भ्रमण नहीं करते। बल्कि डीएफओ के करीबी बनकर बैठे हैं। और इसी का फायदा उठाकर जनाब रेंजर साहब । आए दिन अपने निवास अंबिकापुर में ही बने रहते हैं। अवगत करा दें की सरगुजा वन वृत अंतर्गत वन मंडलों में । अंबिकापुर में निवासरत अफसरों के अफसरशाही का ही दबदबा रहा है। साहब लोगों को रेंजरी भी करना होता है और घर का मोह भी सताता है।जिस कारण पदीय दायित्व में लापरवाही होती है। और यही अफसरशाही और रशूख सरगुजा वन वृत के जंगलों की निगरानी लिए दशकों से ला ईलाज नासूर साबित होता आ रहा है।

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