डीएफओ परदेशी का ढीठ रवैया और निकम्मेपन की वजह से,,बांस के जंगलों पर चल रही कुल्हाड़ियां

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जंगलों के प्रति उदासीन रवैए से जंगल पर आफत,,तो इधर राजस्व भूमि में खड़े महुआ,शीशम,पीपल और बरगद की कटाई का आदेश

बैकुंठपुर कोरिया – रोटी कपड़ा और मकान तो दे दोगे “सरकार” पर क्या अपनी पीढ़ियों की सांसें बचा पाएंगे। जी हां जमीनी हकीकत यही है। वो दलालीराज जो कभी रेत मिट्टी और तमाम खनिज संपदाओं का दोहन करता था। वह आज प्रकृति के उन अभिन्न अंगों की तरफ बर्बादी का संकल्प लिए काफी तेजी से बढ़ रहा है। जो संपूर्ण मानव जीवन के अस्तित्व को बचाए रखने के लिए। पर्यावरण के रूप में अंतिम विकल्प माना जाता है। कोरिया वन मंडल जो कि बड़े वन रकबे के लिए संरक्षित और सुरक्षित जंगल माना जाता रहा है। परंतु नए जिले के विभाजन बाद परिवर्तित वन रकबा काफी कम हो चुका है। बावजूद इसके यहां पर बचे खुचे जंगलों की निगरानी भी । अब वन विभाग नहीं कर पा रहा है। जैसा की हमने इससे पहले अंक में बताया भी था। की कोरिया जिले अंतर्गत बैकुंठपुर वन मंडल में जंगलों को कितनी तेजी से नष्ट किया जा रहा है। और वन भूमि कृषि भूमि में बदलती जा रही है। और जमीन की यह विनाशकारी जंग जंगलों की जमीन ही नहीं। बल्कि उस पर स्थित विशाल वनों को भी काल की गाल में धकेलती जा रही हैं। और जिस पर निर्धारित वन विभाग की जिम्मेदारी भी अब लगभग शून्य दिख रही है। जिसके परिणाम स्वरूप जंगलों की बर्बादी का आलम यह है। कि वन मंडल अंतर्गत दशकों पुरानी तैयार कई बांस नर्सरी देखरेख के अभाव में लगातार उजड़ती जा रही हैं। वन मंडल अंतर्गत अन्य जिलों से लगने वाली वन सीमाओं के पथरीले पहाड़ों में । तैयार हो चुके सागौन व अन्य प्रजाति के पेड़ों की अवैध कटाई से आज बारिश के समय भी । वो पथरीले टीले हरे भरे वनों की बजाय उजड़े और वीरान चट्टान दिख रहे हैं। बता दें कि कोरिया के जंगलों की इमारती लकड़ियां। अवैध तरीके से सबसे ज्यादा सूरजपुर और कोरबा जिले में खफ़ाई जाती हैं । सूत्रों के अनुसार जंगलों की निगरानी नहीं होने की वजह से कोरिया वन मंडल के उत्तरी वन सीमाओं के जंगलों से । प्रत्येक सप्ताह जंगल के रास्ते कई ट्रक साल सरई की लकड़ियों की तस्करी की जाती है । कोरिया जिले के जंगलों से लकड़ियों की तस्करी इतने बड़े पैमाने पर पहले नहीं होती थी। क्यों कि सुरक्षा और निगरानी दुरुस्त होती थी। परंतु कोरिया वन मंडल में जबसे डीएफओ की कुर्सी पर चंद्रशेखर शंकर सिंह परदेशी बैठे हैं। तबसे कोरिया के जंगलों का बंटाधार हो गया है।

राजस्व भूमि पर खड़े महुआ,शीशम,पीपल और बरगद पर्यावरण का हिस्सा नहीं,,?

ऐसा शीर्षक इसलिए लिख रहे हैं। क्यों की जिले में कुछ ऐसा ही चल रहा है। रेत मिट्टी और पत्थर बेचने वाले दलाल इन दिनों हर रोज, सुबह और शाम वन विभाग के रेंज कार्यालय। या फिर राजस्व विभाग के बाबू साहब के पास जमे रहते हैं। आप समझ सकते हैं। की बीते दो वर्षों से जिस तरह जंगलों को काटने का हर वैध अवैध तरीका दलालीराज का समर्थक साबित हुआ है। उसी तर्ज पर अब ये दलाल राजस्व भूमि पर खड़े आम,जामुन,नीम,कटहल,सेमर,आंवला,शीशम,महुआ,बरगद जैसे । पर्यावरण संरक्षण में सहयोगी पेड़ों को काटने की मुहिम चला रखे हैं। और जिसके लिए ये दलाल गांव गांव घूमकर । भूमि स्वामी को कुछ रकम देकर उनसे उन पेड़ों को काटने के लिए एस डी एस को आवेदन दिलवाते हैं । और जिसके बाद कार्यालय में बैठा सेटिंग वाला बाबू उस अनुमति को वन विभाग के पास । आगे की कार्रवाई के लिए भेजता है। जिसके बाद वन विभाग भी । इसलिए अपनी औपचारिक कार्रवाई पूरी कर देता है। क्यों कि आदेश एस डी एम साहब का होता है। और फिर ये बिचौलिए गैर राष्ट्रीयकृत पेड़ों को तो दिन दहाड़े कटवा लेते हैं। और उसी आदेश की आड़ में राजस्व भूमि में दर्ज । राष्ट्रीकृत पेड़ सरई सहित अन्य पेड़ रात के अंधेरे में काट लेते हैं। जो जिले में काफी समय से दलालों का गोरखधंधा बना हुआ है। साथ ही राजस्व विभाग की भूमिका भी संदिग्ध है। और जिस संबंध में माननीय कलेक्टर कोरिया का ध्यानाकर्षण कराते हुए। सवाल है। की वन भूमि से ज्यादा वृहद पैमाने पर राजस्व भूमि में दर्ज पीपल जो की शुद्ध ऑक्सीजन का जरिया माना जाता है। साथ ही गरीबों के आर्थिक आय का साधन महुआ आम,आंवला सहित धार्मिक मान्यताओं से जुड़ा बरगद क्या पर्यावरण का हिस्सा नहीं है। जिसको काटने की अनुमति ब्लॉक के एसडीएम बिना आवश्यक कारणों के बेधड़क दे दे रहे हैं ।

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